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लेखनी प्रतियोगिता -11-Jul-2023


चोट कुदरत की पड़ी
सबको पसीना आ गया
चार दिन बारिश हुई 
शहरों में मातम छा गया।

गौर से देखो ये बंगले
कार बहते जा रहे हैं
ये कंगूरे ऐशो आरामों
के ढहते जा रहे हैं
प्रकृति की अवहेलना का
अर्थ ये समझा रहे हैं
मानवी उन्मत्तता को
आईना दिखला रहे हैं।
देखकर ये प्रलय मंजर
कितनों को रोना आ गया
चार दिन बारिश हुई
शहरों में मातम छा गया।

तीर्थ यात्रा को जो तुमने
पर्यटन से भर दिया
मंदिरों को कैमरों की
रोशनी से भर दिया
तप व संयम को विलास
के रंगों से तर कर दिया
अपनी मानव सभ्यता के
नींव को जर्जर किया
भुगतने के समय फिर
भगवान क्यों याद आ गया
चार दिन बारिश हुई
शहरों में मातम छा गया।

छुट्टियों में हम कभी
रिश्तों से मिलने जाते थे
मिलके सब सम्बन्धियों से
खुशियों से घर भर जाते थे
फिर जाने किस उन्माद में
सम्बन्ध सारे तोड़कर
चले तीर्थ रौंदने हम
दिखावे की होड़ पर
प्रकृति को परिहास समझा
तो ये उत्तर आ गया
चार दिन बारिश हुई 
शहरों में मातम छा गया।।




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4 Comments

Wahhhh बहुत ही खूबसूरत और मार्मिक अभिव्यक्ति

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Suryansh

12-Jul-2023 07:46 AM

बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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